किसान आंदोलन का 59वां दिन, सिंघु बॉर्डर पर आज से किसान संसद
आंदोलन से जुड़े सभी मुद्दों पर बात होनी है।

नई दिल्ली : किसानों के आंदोलन का आज 59वां दिन है। हाड़ गला देने वाली ठंड के बीच कृषि कानूनों के खिलाफ किसान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर डटे हुए हैं। इस मसले के समाधान के लिए सरकार और किसान प्रतिनिधियों के बीच अबतक 11 दौर की बैठक हो गई है, लेकिन कोई हल नहीं निकल सकता है। सरकार कृषि कानून को डेढ़ साल के लिए स्थगित करने और इसमें संशोधन के लिए तैयार है लेकिन किसानों को कृषि कानूनों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
शुक्रवार को किसान प्रतिनिधियों और सरकार के बीच 11वें दौर की बैठक हुई। लेकिन दोनों पक्षों के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई। इस बैठक में सरकार की तरफ से किसान नेताओं को सख्त संदेश दिया। सरकार डेढ़ साल तक इन कानूनों पर रोक लगाने के प्रस्ताव पर अडिग रही तो किसानों ने कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े रहे। अब सरकार आगे बात करने से मना कर चुकी है। सरकार की तरफ से यह भी साफ कर दिया गया कि कानून में कोई कमी नहीं है। सरकार कानून पर बिंदुवार चर्चा ही कर सकती है लेकिन कानूनवापसी का कोई सवाल नहीं है।
वहीं आज से सिंघु बॉर्डर पर किसान संसद की शुरुआत होने जा रही है। इसमें आंदोलन से जुड़े सभी मुद्दों पर बात होनी है। यह संसद दो दिन चलेगी। इसमें सुप्रीम कोर्ट के कुछ रिटायर्ड जज, कुछ पूर्व सांसद, पत्रकार पी साईंनाथ, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण शामिल होंगे।
अब सरकार आगे बात करने से मना कर चुकी है। ऐसे में किसान संसद में आंदोलन की दिशा के बारे में फैसला लिया जा सकता है। सरकार की ओर से दिए कृषि कानूनों को सस्पेंड करने के प्रस्ताव पर फिर से चर्चा हो सकती है।
इसके साथ ही किसान नए कानून वापस लेने और 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालने पर अड़े हैं। पंजाब के कई शहरों और गांवों में इसकी रिहर्सल की जा रही है। पुलिस अधिकारियों के साथ वार्ता में पुलिस ने एक रोडमैप किसान नेताओं के सामने रखा जिस पर आज किसानों अपना जवाब देंगे।
आपको बता दें कि कड़ाके की सर्दी और गिरते पारे के साथ-साथ कोरोना के खतरों के बीच 26 नवंबर से बड़ी तादाद में किसान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर डटे हैं। लेकिन किसान और सरकार के बीच अबतक इस मसले पर अबतक कोई सहमति नहीं बन पाई है। बड़ी तादाद में प्रदर्शनकारी किसान सिंधु, टिकरी, पलवल, गाजीपुर सहित कई बॉर्डर पर डटे हुए हैं। इस आंदोलन की वजह से दिल्ली की कई सीमाएं सील हैं।