बच्चों को 2021 के अंत तक करना पड़ेगा कोरोना के टीका का इंतजार
दवा कंपनियों को उनके लिए अलग से ट्रायल शुरू करना होगा

नई दिल्ली: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक लिमिटेड के संयुक्त शोध से विकसित की जा रही कोरोना वायरस की वैक्सीन, जिसे ‘कोवैक्सीन’ नाम दिया गया है.
डॉक्टरों का मानना है कि मौजूदा वैक्सीन बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हो सकती है और दवा कंपनियों को उनके लिए अलग से ट्रायल शुरू करना होगा. हालांकि, ब्रिटेन ने फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन को इस विकल्प के साथ अनुमति दी है कि आपातकालीन स्थिति में बच्चों का भी टीकाकरण किया जाए.
ये साल बीतने तक लाखों वयस्क लोगों को कोरोना वायरस का टीका लगाया जा चुका होगा, लेकिन बच्चों को 2021 के अंत तक इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि वे इस वैक्सीन के ट्रायल का हिस्सा नहीं हैं.
अमेरिका में एमोरी वैक्सीन सेंटर के निदेशक डॉ रफी अहमद का कहना है कि “फिलहाल बच्चों को टीके नहीं लगाए जाएंगे क्योंकि वे ट्रायल्स का हिस्सा नहीं हैं. दवा कंपनियों में से कुछ ने बच्चों पर अलग ट्रायल की योजना बनाई है.” वैक्सीन निर्माता फाइजर और मॉडर्ना ने हाल ही में बच्चों पर भी क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया है.
अलग से किए जा रहे इस कठिन ट्रायल के तहत दवा कंपनियों को लंबी अवधि की सुरक्षा, स्वास्थ्य मापदंड, दो खुराक के बीच अंतर आदि की जांच करने की जरूरत होगी ताकि बच्चों पर वैक्सीन के प्रयोग का नतीजा बेहतर हो सके. इस प्रक्रिया में लगभग एक साल लगने की उम्मीद है.
संभावित वैक्सीन के ज्यादातर निर्माताओं ने 16 वर्ष या इससे ज्यादा उम्र के लोगों का नामांकन किया है. हालांकि, फाइजर ने अपने कुछ ट्रायल्स में 12-15 साल की उम्र के बच्चों को भी शामिल किया है.
वयस्कों के मुकाबले बच्चों को कम खतरा इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के आंकड़ों के मुताबिक, Covid-19 वायरस अब तक भारत में 97 लाख से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर चुका है.
ICMR आंकड़ों के आधार पर नेशनल कोऑपरेटिव डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NCDC) के एक अनुमान के मुताबिक, करीब 12 प्रतिशत संक्रमित आबादी 20 वर्ष से कम उम्र की है. बाकी 88 प्रतिशत संक्रमित लोग 20 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं. ये आंकड़ा 8 दिसंबर, 2020 तक का है.
कोरोना महामारी की शुरुआत से ही वयस्कों की तुलना में बच्चों में ये बीमारी और इसकी मृत्यु दर काफी कम रही है. हालांकि, कोविड-19 से संक्रमित हो चुके कई बच्चों में अब एक नया लक्षण देखने में आया है जिसे मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेटरी सिंड्रोम (PMIS) कहा जाता है.
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (JAMA) के जर्नल में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि “कोरोना संक्रमण के बाद बच्चों और वयस्कों- दोनों में ही एक दुर्लभ मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेटरी बीमारी देखी गई है.”