
कटघोरा:कटघोरा वनमंडल में पहली मर्तबा एक महिला अधिकारी ने आमद दी है।अपने तौर तरीकों से डीएफओ शमा फारूकी ने कटघोरा वनमंडल के कार्यो का शिलशिला प्रारंभ किया।इनकी तेजतर्रार कार्यशैली से कइयों के होश फाख्ता हो गए हैं।रही बात भ्रष्टाचार जैसे आरोपो की तो ये सब तात्कालीन डीएफओ के कार्यकाल की देन है जिसका शिकार शमा फारूकी को होना पड़ रहा है।हर कोई इनकी कार्यशैली पर अंकुश लगाने पर आमादा है।वर्ष 2020 के फरवरी माह में इन्होंने अपना पदभार सम्भाला है। पदभार संभालते ही कुछ दिनों बाद लाग डाउन जैसे हालात निर्मित हो गए।जिससे विभागीय कार्यो में विराम लग गया और किसी भी तरह के निर्माणकार्य सम्भव नही हो सके।लाग डाउन के दौरान फारूकी ने उन सभी कार्यो का जमीनीस्तर से निरीक्षण किया जो तात्कालीन डीएफओ के कार्यकाल से आधे अधूरे अवस्था मे थे।जब इन कार्यों का निरीक्षण किया गया तो कई कार्यो में अनियमितता पाई गई जिस वजह से फारूकी ने जांच टीम तैयार कर उनकी जांच करवाई।इस बीच जांच में कई खामियां पाए जाने से रेंजरों के चहेते ठेकेदारों के कार्यो की पोल खुलने लगी और जांच पूरी होने तक भुगतान नही किया जा सका।लिहाजा वर्तमान डीएफओ शमा फारूकी पर कई तरह के आरोपो का शिलशिला शुरू हो गया।
दरअसल तात्कालीन डीएफओ सन्त साहब के कार्यकाल के दौरान करोड़ो की लागत से कई विभागीय कार्य स्वीकृत हुए थे। मण्डल के अधीनस्थ वनपरिक्षेत्राधिकारियो को अपने छेत्र में इन कार्यो का शिलान्यास करना था,पर वनपरिक्षेत्राधिकारियो ने इन कार्यो को विभागीय तौर पर ना करके अपने चहेते ठेकेदारों को सौप दिया।ठेकेदारों को काम मिलते ही इन्होंने ज्यादा कमाई के फेर में निर्माणकार्यो में जमकर बंदरबाट की,लिहाजा घटिया व गुणवत्ता विहीन कार्य देख सन्त साहब भी हतप्रभ थे और इन कार्यो का भुगतान करना सही नही समझे।इस बीच हाथी मामले पर इनका निलम्बन हो गया और भुगतान अधर में लटक गया।ये पूरा विवादित माजरा तात्कालीन डीएफओ सन्त साहब के कार्यकाल के समय का था।इस बीच डीएफओ शमा फारूकी ने कटघोरा वनमंडल में आमद दी।इनके पदभार संभालते ही रेंजरों व ठेकेदारों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी,शायद अब निर्माणकार्यो का भुगतान हो जाएगा,पर फारूकी की कार्यशैली देख इनके माथे पर पसीना आ गया। फारूकी ने उन सभी विभागीय कार्यो का निरीक्षण स्वयं जीरो ग्राउंड में जाकर किया था जो तात्कालीन डीएफओ के कार्यकाल से आधे अधूरे थे।जब उन निर्माणकार्यो में खामियां नजर आई, तो डीएफओ फारूकी ने सभी निर्माणकार्यो की जांच किये बगैर भुगतान करना उचित नही समझा।लिहाजा किसी भी निर्माणकार्यो का भुगतान जांच बगैर नही हो सका।भुगतान नही होता देख ठेकेदारों में भी अंदरूनी रोष व्याप्त होने लगा और फिर शुरू हुआ वो दौर जहाँ, डीएफओ की कार्यशैली अनुभवविहीन बन गई।अब भला कोई जिम्मेदार अधिकारी आखिर कैसे आधे अधूरे व गुणवत्ताविहीन कार्यो का भुगतान कर दे।
जनप्रतिनिधियों ने भी फारूकी की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा दिया है,जमकर भ्रष्टाचार करने के आरोप भी खूब लग रहे हैं।एकाएक लगातार अनगर्ल आरोपो का दंश झेलने के बाद भी फारूकी बिना हताश हुए अपनी सेवाओं से पीछे नही हटी।यहाँ तक कि इनको वनमंत्री का रिश्तेदार भी बता दिया गया।अब आप ही सोचिए तात्कालिन डीएफओ के समय हुए अधूरे कार्यो का अगर बिना जांच किये भुगतान हो जाता तो शायद ये शिलशिला ही शुरू नही होता,पर अनैतिक कार्यो का भुगतान फारूकी ने करना उचित नही समझा और आरोपो के आगोश में समा गई।फारूकी ने सभी निर्माणकार्यो का विजिट किया तथा जांच टीम गठित कर उच्चस्तरीय जांच भी करवाई,जांच में जितने भी कार्य गुणवत्ता के दायरे में आये ,उनका समय समय पर भुगतान भी किया गया है।फारूकी ने विभागीय कार्यो में तेजी लाने का भरसक प्रयास भी किया है।
हाथी शावकों व तेंदुए की मौत पर भी फारूकी को जमकर घेरा गया ,अब भला बीहड़ जंगलो में अगर किसी वन्यप्राणियों की अकस्मात मौत हो जाये तो भला उसमे सीधे तौर पर एक डीएफओ कैसे दोषी हो सकता है?बल्कि जब डीएफओ को ऐसी घटनाओं की जानकारी मिलती है तो वे उस कारण को जानने का प्रयास करते है कि किन कारणों से उन वन्यप्राणियों की मौत हुई है।सही कारण पता लगने पर विभाग उस कमी में सुधार करने का प्रयास करते हैं।पर सीधे तौर यह कह देना की डीएफओ की नाकामी से यह घटना हुई है तो इसे सार्थक नही माना जा सकता ऐसी घटनाए तो किसी भी अधिकारी की सेवाओ के दौरान हो सकती है।जब भी ऐसी घटनाएं सामने आई है तो फारूकी स्वयं घटना स्थल पर पहुची है और उन कारणों को जानने का प्रयास किया है।
मटेरियल सप्लायर के भुगतान को लेकर भी फारूकी को घेरा जा रहा है बताया जा रहा है कि अपने चहेते ठेकेदार को भुगतान किया जा रहा है।बता दे कि जिस ठेकेदार को भुगतान किया जा रहा है वो तात्कालीन डीएफओ के कार्यकाल से मटेरियल सप्लाई कर रहे थे अब भला इनको भुगतान हो जाने से ये अचानक कैसे फारूकी के चहेते बन गए।अनगर्ल तरीके से तथ्यहीन आरोप लगाकर एक अधिकारी की कार्यशैली पर आरोप मढ़ने का यह नायाब तरीका है।
कार्यशैली को लेकर भी घेरने का भरपूर प्रयास
शमा फारूकी की कार्यशैली भी सवालो के घेरे में गुलाटी मार रही है अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर किस तरह इनकी कार्यशैली अनुभवविहीन है क्या इन्होंने विभागीय कार्यो के दौरान कोई भ्रष्टाचार किया है?अगर किया है तो उसमे तथ्यात्मक सबूतों के साथ जाँच होनी चाहिए।शहर में गुपचुप तरीके से चर्चा है कि जब एक अधिकारी अपने कार्यो का निर्वहन सही तरीके से करता है तो अक्सर उनकी निंदा हुआ करती है।लगातार आरोपो के बीच भी फारूकी हताश नही हुई और अपने कार्यो का उत्तरदायित्व निष्ठापूर्वक निभाती रही है।
जब किसी अधिकारी पर लगातार कई तरह के आरोप लगने लगे तो उसके दो ही कारण हो सकते हैं या तो अधिकारी भ्रस्ट है या ईमानदारी की मिशाल है।यहाँ पर अभी तक केवल भ्रष्टाचार हो रहा है इस तरह के आरोप लग रहे हैं, पर अभी तक भ्रष्टाचार साफ नही हो सका है कि कहा पर भ्रष्टाचार, कैसे भ्रष्टाचार।पर इतना जरूर साफ है कि आरोप लगाकर फारूकी की कार्यशैली जरूर धूमिल की जा रही है ताकि इनका स्थानांतरण अन्यत्र हो जाये।कटघोरा जैसी जगहों में ऐसे अधिकारियों की नितांत आवश्यकता है जो विवादों को दरकिनार कर केवल प्रशासनिक सेवाओं को प्राथमिकता देते हैं।ऐसे हालातो में कर्तब्य निष्ठ अधिकारी का स्थानांतरण हो जाना कटघोरा वनमंडल के लिए अपूर्णीय छति हो सकती है।
एक जिम्मेदार अधिकारी पर बिना सबूतों के आरोप लगाना कतई उचित नही है।इस तरह के आरोपो को भाजपा मंडल कटघोरा के अध्यक्ष धन्नू दुबे जी ने सिरे से खारिज कर दिया है इन्होंने कहा कि ठेकेदार व जनप्रतिनिधियों में कंपीटिशन की भावना होती है और इस तरह की भावना को लेकर मिथ्यात्मक आरोप मढ़ देना कोई बड़ी बात नही है ऐसे आरोपो से एक अधिकारी की कार्यशैली दोषी नही होनी चाहिए।दुबे जी ने आगे बताया कि आरोप लगना कोई बड़ी बात नही है आरोप लगते रहते हैं जब तक आरोप सिद्ध नही हो जाते किसी को दोषी नही माना जा सकता। केवल एक अधिकारी को अनगर्ल आरोपो में घेर कर मात्र उन्हें परेशान करने का जरिया है बिना सबूतों के आधार पर इस तरह आरोप लगाना सही नही है बल्कि यह जांच का विषय है जांच में साफ हो पायेगा की आरोप सत्य है या मिथ्या।