
रायपुर। संसदीय सचिवों की नियुक्तियों पर जेसीसीजे अध्यक्ष अमित जोगी ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा है कि, संसदीय सचिवों और निगम-मंडल अध्यक्षों जैसे सफेद हाथियों से कहीं ज्यादा छत्तीसगढ़ के भविष्य के लिए शिक्षक और पुलिस बल जरूरी है।
उच्च न्यायालय ने 13.4.18 को संसदीय सचिवों की तमाम शक्तियों, सुविधाएं और मंत्रियों के रूप में काम करने पर रोक लगा दी है। संसदीय सचिवों को शपथ दिलाने के पहले मोहम्मद अकबर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका वापस लें, वरना उनपर झूठा शपथपत्र दाखिल करने का आपराधिक प्रकरण चल सकता है।
नवनियुक्त संसदीय सचिव हवा में न उड़े और संवैधानिक मंशा के अनुरूप जनसेवा में भागीदार बनें। अमित ने कहा है कि 15 सफेद हाथियों को लाल बत्ती बांटने के पहले सर्वप्रथम मुख्यमंत्री को पिछले कई सालों से मजधार में अटकी 14580 शिक्षकों, 48761 जिला पुलिस बल के उम्मीदवारों की पदस्थापना, 417 सीएएफ की प्रतीक्षा सूची को ज्वाईनिंग और 1756 विद्यामितानों, 1092 व्यावसायिक प्रशिक्षकों, 16802 प्रेरकों, जनभागीदारी और अतिथि शिक्षकों को नियमित कर देने के आदेशों में अपना दस्तखत कर देना था।
संसदीय सचिवों की तमाम शक्तियों और सुविधाएं पर रोक
अमित जोगी ने कहा है कि कांग्रेस के 2018 के जनघोषणा पत्र में ये सारी घोषणाएं हो चुकी हैं। 2019-20 के बजट में इनको धरातल में लाने का वित्तीय प्रावधान भी है। छत्तीसगढ़ के लाखों बेरोजगार युवाओं को अब केवल वित्त मंत्री (जो मुख्यमंत्री भी हैं) के दस्तखत का इंतेजार है।
अमित जोगी ने याद दिलाया कि छत्तीसगढ़ शासन के अधिकृत मंत्री मोहम्मद अकबर ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति को अवैध घोषित करने की उनकी याचिका के सम्बंध में 13.4.18 को बयान दिया था कि उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका का निराकरण किया है न कि उसे निरस्त किया है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि न्यायालय ने संसदीय सचिवों की तमाम शक्तियों और सुविधाएं पर रोक लगा दी है और किसी भी सूरत में संसदीय सचिव मंत्रियों के रूप में काम नहीं कर पाएंगे।
अमित जोगी ने उम्मीद जताई कि भूपेश बघेल की सरकार इन बातों पर कायम रहेंगी। साथ ही अपने अधिकृत मंत्री अकबर से उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद 136 के अंतर्गत दाखिल अपनी शपथपत्र याचिका को तत्काल वापस लेने का निर्देश देगी। ताकि अकबर गलत शपथपत्र दाखिल करने के अपराध से बच सकें और नवनियुक्त संसदीय सचिव हवा में नहीं उड़ने लगें और संवैधानिक मंशा के अनुरूप जनसेवा में भागीदार बनें।