अयोध्या मामले पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सुन्नी वक्फ बोर्ड नहीं करेगा कोई रिव्यू फाइल
ओवैसी बोर्ड के मेंबर भी नहीं है, उनके बयान का कोई मतलब नहीं है

नई दिल्ली: अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड की ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अध्यक्ष ज़फर फारुकी ने साफ कर दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष के तौर पर मैं ये कहना चाहता हूं कि कोई भी रिव्यू फाइल नहीं करेंगे. हम इस फैसले का स्वागत करते हैं. अगर कोई भी रिव्यू पीटिशन की बात करता है तो ये वक्फ से संबंधित नहीं है .अभी 5 एकड़ जमीन के मामले हमने कोई निर्णय नहीं लिया है. ओवैसी बोर्ड के मेंबर भी नहीं है, उनके बयान का कोई मतलब नहीं है.
Zafar Farooqui, Chairman of Uttar Pradesh Sunni Central Waqf Board: We welcome and humbly accept the verdict of the Supreme Court. I want to make it clear that UP Sunni Waqf Board will not go for any review of the SC order or file any curative petition. pic.twitter.com/k5iUcuX08n
— ANI UP (@ANINewsUP) November 9, 2019
इससे पहले सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने फैसले के बाद कहा था कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद ‘अमूल्य’ है. सुप्रीम कोर्ट के फरमान के मुताबिक किसी दूसरी जगह मस्जिद बनाना उन्हें मंजूर नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल हिंदू पक्ष को मंदिर के निर्माण के लिए दे दी है और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में ही कोई और वैकल्पिक जमीन देने का आदेश दिया गया है.
फैसले पर जिलानी ने कहा, ‘मस्जिद अनमोल है. पांच एकड़ क्या होता है? 500 एकड़ भी हमें मंजूर नहीं.’
जिलानी ने कहा, “शरिया हमें मस्जिद किसी और को देने की इजाजत नहीं देता, उपहार के तौर पर भी नहीं.” उन्होंने कहा कि जमीन स्वीकार करने पर अंतिम निर्णय सुन्नी वक्फ बोर्ड लेगा. जिलानी ने फिर कहा कि बोर्ड सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करता है, लेकिन निर्णय पर असहमति प्रत्येक नागरिक का अधिकार है.
उन्होंने कहा, “हम फैसले का इस्तकबाल करते हैं, लेकिन हम इससे मुतमइन नहीं हैं. फैसला हमारी उम्मीदों के मुताबिक नहीं हुआ.” उन्होंने कहा कि वह समीक्षा याचिका दायर करेंगे लेकिन अंतिम निर्णय कानूनी टीम के साथ विचार-विमर्श करने के बाद भी लेंगे.”
जिलानी ने आगे कहा, “भारत के प्रधान न्यायाधीश का आज का आदेश देश के कल्याण में लंबे समय तक सक्रिय रहेगा.” फैसले पर प्रतिक्रिया पूछने पर मुस्लिम या सुन्नी वक्फ बोर्ड के एक अन्य वकील राजीव धवन टाल गए.
ये दिया है फैसला
रामलला विराजमान को सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक व्यक्ति माना
कोर्ट ने एएसआई की रिपोर्ट को माना और कहा कि मस्जिद के नीचे पहले से एक ढांचा मौजूद था.
राम चबूतरा और सीता रसोई पर कोई विवाद नहीं, हिन्दू इस पर करते रहे हैं पूजा.
आस्था और विश्वास पर कोई विवाद नहीं हो सकता. हिंदुओं का विश्वास है कि विवादित स्थल पर भगवान राम का जन्म हुआ था. पुरातात्विक प्रमाणों से हिंदू धर्म से जुड़ी संरचना का पता चलता है. इतिहासकारों और यात्रियों के विवरणों से भगवान राम के जन्म भूमि का ज़िक्र.
कोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीने में मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाने की बात कही है.